ब्यावर (अजमेर, राजस्थान) 26 मई, 2016
मैं वे 40 दिन कभी नहीं भूल सकता हूँ जब हम चांग गेट पर धरने पर बैठे थे और इसका एक एक क्षण मैं अपने कैमरे में कैद कर रहा था, तब मैंने यह सपने में भी नहीं सोचा था कि हम इतिहास बना रहे हैं. यह कहना है अशोक सेन का जो ब्यावर के मशहूर फोटोग्राफर एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं. वे ऐसे अकेले कार्यकर्त्ता नहीं हैं जो इस ऐतिहासिक धरना जो 6 अप्रेल 1996 को ब्यावर के चांग गेट पर मजदूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) की ओर लगाया गया था. गुरूवार को सैकड़ों की तादाद में ब्यावर शहर के नागरिक और आस-पास के लोगों ने इस शिलालेख के लगाये जाने पर के मौके पर धरने की विभिन्न यादों को ताज़ा किया. ब्यावर में लगाया गया यह शिलालेख देश का पहला ऐसा शिलालेख है जो सूचना के अधिकार के लिए हुए जन संघर्ष की याद में लगया गया है.
मजदूर किसान शक्ति संगठन मजदूरों और सीमान्त किसानों का एक संगठन है जिसकी स्थापना 1 मई 1990 को भीम के पाटिया के चौड़ा में की गई थी जिसका मुख्य कार्यलय राजसमन्द जले के एक छोटे से गाँव देवडूंगरी में है. यह संगठन मजदूरों के न्यूनतम मजदूरी के मुद्दे, जमीन, वन अधिकार आदि के मुद्दे पर संघर्षरत है. इसी संगठन की ओर से 6 अप्रेल 1996 को ब्यावर के चांग गेट पर धरना लगाया जिसके बारे में प्रसिद्द पत्रकार कुलदीप नैयर ने कहा कि यह आन्दोलन देश में पारदर्शिता, जवाबदेही और भागीदारीपूर्ण लोकतंत्र के लिए एक मिशाल बन गया.
धरने की बजह से ना केवल राजस्थान सरकार को सूचना का अधिकार कानून 2000 पास करना पड़ा बल्कि इसकी बजह से सूचना के जन अधिकार का राष्ट्रीय अभियान बना जिसने केंद्र सरकार पर सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 बनाये और लागू किये जाने के लिए दवाब बनाया.
इस यादगार कार्यक्रम में सिक्किम उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस.एन. भार्गव, शंकर सिंह रावत रजस्थान विधानसभा के सदस्य (MLA), ब्यावर नगर परिषद् सभापति एवं उप सभापति, डी.एल. त्रिपाठी, अनंत भटनागर एवं अन्य बहुत प्रबुद्ध नागरिक मौजूद थे. यह उल्लेखनीय है कि इस शिलालेख का शिलान्यास भारत के प्रथम मुख्य सूचना आयुक्त माननीय वजाहत हबीबुल्लाह द्वारा सूचना के अधिकार के 10 वर्ष पूरे होने पर 13 अक्टूवर, 2015 को किया था.
इस अवसर पर पीयूसीएल की राजस्थान प्रदेश की अध्यक्ष एवं धरने में पूरा समय बिताने वाली कविता श्रीवास्तव ने कहा कि सूचना के अधिकार के 6 अप्रेल, 1996 को शुरू हुए इस धरने में सब्जी बेचने वालों ने हमें मुफ्त में सब्जी उपलब्ध करवाई, धर्मशाला वालों ने सामान रखने के लिए धर्मशाला के कमरे खोले, शहर के व्यापारियों ने हमें दिल से समर्थन दिया और यहाँ के प्रबुद्ध नागरिक और पत्रकार हमारे साथ हमेशा खड़े रहे. ऐसा लगता था कि इस सूचना के अधिकार कानून के लिए पूरा ब्यावर शहर हमारे परिवार की तरह हो गया था.
प्रमुख सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्त्ता एवं मजदूर किसान शक्ति संगठन के संस्थापकों में से एक ने कहा कि “ भारत में पास किया गया सूचना का धिकार कानून सबसे अलग है क्योंकि यह इस देश के गरीबों, वंचितों, किसानों और मजदूरों के द्वारा लाया गया कानून है ना कि अकादमिक, पत्रकार और बुद्धिमान लोगों द्वारा.” उन्होंने कहा कि ऐसे समय में जब सूचना के अधिकार पर बार-बार हमले किये जा रहे हों और इसे बदलने की चेष्टाएँ की जा रहीं हों तब साधारण लोगों की भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाती है. उन्होंने कहा कि यह एकमात्र कानून है जो साधारण जनता के संघर्ष से बना और उनके द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है प्रत्येक वर्ष लगभग 60 लाख लोग सूचना के अधिकार का प्रयोग करते हैं.
सिक्किम उच्च न्यायलय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस.एन. भार्गव ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि 1996 में इस ऐतिहासिक धरने का हिस्सा नहीं होने का उन्हें मलाल है लेकिन उस समय वे सिक्किम उच्च न्यायलय में मुख्य न्यायाधीश थे इसलिए इसमें भाग नहीं ले सके. लेकिन उन्होंने कहा कि अब वे इस पारदर्शिता, जवाबदेही और भागीदारीपूर्ण लोकतंत्र के आन्दोलन के लिए जो भी कर सकते हैं जरुर करेंगे . उन्होंने कहा कि यह ब्यावर शहर के लिए गर्व की बात है कि इस प्रकार का शिलालेख ब्यावर में लगाया गया है जो देश के लाखों लोगों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा देगा.
बहुत लोग जो इस कार्यक्रम में नहीं आ पाए लेकिन 1996 के धरने में भागीदार थे उन्होंने अपने सन्देश भेजे जिन्हें इस आयोजन के दौरान पढ़कर सुनाया गया “मुझे अभी भी धरने में शामिल होना याद है. जो लौ इस धरने के द्वारा जलाई गई थी वह सरकार में पारदर्शिता के राष्ट्रीय आन्दोलन के रूप में उभरी. सूचना का अधिकार समाज के किसी एक वर्ग के लिए ही उपयोगी नहीं है यह समाज के सभी तबकों के लिए कारगर है. यही वो अधिकार है जो संविधान और उसके मूल्यों को जिन्दा रखता है.. कुलदीप नैयर, एक पत्रकार, लेखक, और मानवाधिकार कार्यकर्त्ता का यह सन्देश पढ़ा गया.
विकास अध्ययन संस्थान जयपुर के पूर्व निदेशक प्रोफेसर वी.एस. व्यास का यह सन्देश पढ़ा गया “सूचना का अधिकार भारतीय लोकतंत्र के परिपक्व होने की निशानी है, इस महत्वपूर्ण अधिकार के लिए लोगों का सामूहिक प्रयास उनके लोकतान्त्रिक मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को जाहिर करता है.”
राजस्थान उच्च न्यायलय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस दवे ने भी एक सन्देश भेजा जिसमें उन्होंने कहा कि: “मैं हमेशा आपके साथ हूँ.. ऐसे साधारण लाखों लोग जो अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए हर रोज़ भय के इस माहौल में लड़ते हैं और इज्जत के साथ जीना चाहते हैं. मैं इस कार्यक्रम की सफलता की कामना करता हूँ और इस आन्दोलन के साथ हूँ.”
एक तरफ तो ब्यावर के स्थानीय नागरिक यह गर्व महसूस कर रहे हैं कि इस शहर ने पूरे देश के लिए सूचना के अधिकार जैसा कानून दिया वहीँ दूसरी तरफ राजस्थान सरकार ने अपनी कुछ पाठ्य पुस्तकों से वे अंश हटा दिए हैं जिनमें यह वर्णित था कि- किस प्रकार मजदूर किसान शक्ति संगठन और अन्य संगठनों की मदद से सूचना के अधिकार का आन्दोलन ने जन्म लिया और इस देश को सूचना का अधिकार कानून दिया. इस कार्यक्रम के दौरान यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हुआ कि RTI, MKSS और ब्यावर (राजस्थान) के योगदान का जो हिस्सा हटा दिया गया है उसे वापस जोड़ा जाये.
(साभार - मज़दूर किसान शक्ति संगठन की प्रेस विज्ञप्ति)