लोकसभा में सोमवार दिनांक 22 जुलाई 2019 को सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक 2019 विपक्ष के विरोध के वावजूद ध्वनि मत से पारित कर दिया गया। 25 जुलाई 2019 को यह विधेयक राज्यसभा में भी पारित हो गया है। हालांकि विपक्ष की मांग थी कि इस विधेयक को सलेक्ट कमेटी को भेजा जाए, पर सरकार ने इसे माना नहीं। तृणमूल कांग्रेस के डेरैक ओ'ब्रायन ने भी इस विधेयक के लिए संशोधन प्रस्ताव रखा कि विधेयक को संवीक्षा के लिए सलेक्ट कमेटी को भेजा जाए, पर इस संशोधन प्रस्ताव के पक्ष में 75 और विपक्ष में 117 वोट पड़े, अतः यह संशोधन प्रस्ताव पारित नहीं हो सका।
इस संशोधन विधेयक के द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 13, 16 और 27 में संशोधन किया गया है। इन धाराओं के प्रावधानों का सम्बन्ध मुख्य सूचना आयुक्त और सुचना आयुक्त के कार्यकाल से सम्बंधित है, जिसके अनुसार सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत इनका कार्यकाल पांच वर्ष के लिए निश्चित किया गया था और इनकी नियुक्ति केंद्र और राज्यों में की जाने की व्यवस्था थी। संशोधन अधिनियम के अंतर्गत अब केंद्र सरकार तय करेगी कि इनके कार्यकाल की सीमा क्या होगी।
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 में यह व्यवस्था थी कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त का वेतन और पद की स्थिति को मुख्य निर्वाचन आयुक्त और चुनाव आयुक्त के समान रखा गया था, जबकि संशोधन अधिनियम के अनुसार मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त का वेतन और उनकी सेवा शर्तें केंद्र सरकार तय करेगी।
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 का धारा 13 और 16 के तहत केंद्रीय सूचना आयुक्तों (CIC) को चुनाव आयोग का दर्जा और राज्य सूचना आयुक्तों को प्रमुख सचिव का दर्जा दिया गया था, ताकि वे स्वतंत्र और प्रभावी तरीके से कार्य कर सकें। जाहिर है सूचना का अधिकार अधिनियम में संशोधन के बाद सूचना आयोग की स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी। विपक्षी दलों का तर्क है कि इस संशोधन विधेयक से पारदर्शिता कानून को कमजोर करेगी और सूचना आयोग की आजादी बाधित होगी। विपक्ष चाहता है कि इससे पहले कि बिल को राज्यसभा में पेश किया जाए, इस पर चर्चा की जाए और एक संसदीय समिति द्वारा इसकी छानबीन की जाए। विपक्ष का आरोप है कि केंद्र सरकार व्यक्ति-से-व्यक्ति (पर्सन-टू-पर्सन) मामले को देखते हुए उनके वेतन भत्ते, कार्यकाल और सेवा शर्तें तय करेगी। इससे सूचना का अधिकार कानून की मूल भावना से खिलवाड़ होगा।
संशोधन विधेयक लोकसभा और राज्यसभा में पारित हो गया है, अब इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा, तत्पश्चात यह अधिनियम के रूप में कानूनी रूप से लागू हो जाएगा।
- केशव राम सिंघल
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