Tuesday, May 1, 2018

भीम (राजसमंद) में आयोजित मजदूर मेले में हुआ ‘RTI कैसे आई’ पुस्तक का हुआ लोकार्पण


*भीम (राजसमंद) में आयोजित मजदूर मेले में हुआ ‘RTI कैसे आई’ पुस्तक का हुआ लोकार्पण*


भीम, राजसमंद, राजस्थान
01 मई 2018

राजसमंद ज़िले के भीम के पाटियाँ का चौड़ा में हर वर्ष की भाँति एक मई को अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर मज़दूर मेला आयोजित किया गया। मेले में देश के विभिन्न भागों से आए लोगों ने मज़दूरों के प्रति अपनी एकजुटता प्रकट की। देश में एक सशक्त जवाबदेही क़ानून बनाया जाए, नरेगा को सुचारू रूप से चलाने, न्यूनतम मज़दूरी को उचित दर से बढ़ाने, राशन से ग़रीबों के काटे गये नामों को पुनः जोड़ने व खाद्य सुरक्षा क़ानून के तहत पारदर्शिता लाने सहित अन्य कई प्रस्ताव भी इस अवसर पर लिए गए। साथ ही ‘RTI कैसे आई’ पुस्तक का लोकार्पण हुआ और जनता की ओर से एक जन घोषणा-पत्र आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए जारी किया गया।



उल्लेखनीय है कि एक मई 1990 से लगातार ग़रीब, किसान एवं मज़दूर राजसमंद ज़िले के भीम में मज़दूर मेले का आयोजन करते आ रहे हैं। इस साल इस मेले को 28 साल पूर्ण हुए हैं। संगठन के नारायण सिंह ने बताया कि इस बार इस मेले की ख़ासियत रही कि पिछले दो दिन से भीम क्षेत्र की महिलाओं ने इस आयोजन की कमान सम्भाली। 30 अप्रैल की मोटर-साइकल रैली के बाद आज बड़ी संख्या में महिलाओं ने मेले में भागीदारी निभाते हुए शराब-बंदी के लिए एकजुटता दिखाई। वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता लाल सिंह ने बताया कि मेले में भीलवाड़ा व राजसमंद ज़िलों से आए सिलिकोसिस पीड़ितों ने भी हिस्सा लिया उन्होंने कहा कि प्रशासन ने सिलिकोसिस होने के प्रमाण-पत्र तो इन्हें दे दिए पर इलाज के लिए राशि अभी तक नहीं दी।

‘RTI कैसे आई’ पुस्तक का हुआ लोकार्पण

पूर्व प्रशासनिक अधिकारी व प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय एवं मज़दूर किसान शक्ति संगठन के साथियों द्वारा लिखी गयी पुस्तक ‘RTI कैसे आई!’ का लोकार्पण मेले में हुआ। यह पुस्तक पूर्व में अंगरेजी में लिखी गयी थी, जिसका प्रकाशन रोली बुक्स ने किया था। इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद अभिषेक श्रीवास्तव ने किया, जिसे राजकमल प्रकाशन के उपक्रम 'सार्थक' ने प्रकाशित किया है। इस पुस्तक की प्रस्तावना गोपालकृष्ण गांधी ने लिखी। पुस्तक के लोकार्पण के अवसर पर अरुणा रॉय ने कहा कि इस इलाक़े के लोगों ने सूचना के अधिकार आंदोलन की शुरुआत कई वर्षों पूर्व की। उन्होंने कहा कि ब्यावर में सूचना के अधिकार पर 1996 में 44 दिन का जो धरना दिया गया उस धरने के बाद ही सूचना का अधिकार एक राष्ट्र-व्यापी आंदोलन बना। यह पुस्तक RTI आंदोलन के इतिहास की ज़मीनी कहानी पर आधारित है। उन्होंने यह भी कहा कि देश में जो लोगों को बाँटने की राजनीति की जा रही है उसे हमें नकारना होगा और तोड़ने की बजाय हमें समाज को जोड़ना होगा। इस आंदोलन से जुड़े हुए कई संघर्ष-शील कार्यकर्ताओं ने इस पुस्तक की प्रशंसा करते हुए आंदोलन के वक़्त बिताए हुए अपने अनुभवों को साझा किया।



निखिल डे ने कहा कि यह हमारे लिए गर्व की बात है कि इस पुस्तक में हमारे आंदोलन और संघर्ष के इतिहास को लिखा गया है। हमारे इस आंदोलन की वजह से ही सूचना के अधिकार जैसा क़ानून पास हुआ। इस क़ानून से ना केवल देश को बल्कि आम जन को भी फ़ायदा हुआ है और जनता को अपने हक़ों से सम्बंधित सवाल सरकारों से पूछने की ताक़त मिली है। वरिष्ठ महिला कार्यकर्ता एवं सूचना के अधिकार आंदोलन से जुड़ी सुशीला बाई ने कहा कि आंदोलन के वक़्त हमें कहा जाता था कि ये घाघरा पलटन औरतें क्या कर लेंगी लेकिन हम जैसी घाघरा पलटन औरतें ही संघर्ष के बल पर देश में सूचना का अधिकार व रोज़गार गारंटी क़ानून ले आई। स्वतंत्र पत्रकार व दलित नेता भँवर मेघवंशी ने कहा कि ऐसा पहली बार हुआ है कि जनता के संघर्ष के बलबूते कोई क़ानून आया और आज उस क़ानून से जुड़ी इस क़िताब का जनता के बीच में ही लोकार्पण किया जा रहा है जो हर्ष की बात है। वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता बालूलाल ने कहा कि सूचना के अधिकार आंदोलन ने भ्रष्टाचार को रोकने में अहम भूमिका निभाई है और ये क़िताब निश्चित रूप से आने वाली पीढ़ी को प्रेरणा देगी। । इस अवसर पर कविता श्रीवास्तव और अजमेर के साथी डी. एल. त्रिपाठी ने भी सूचना के अधिकार से सम्बंधित जन-आंदोलन से जुड़े अपने स्मरणों को साझा किया।

इस अवसर पर पी.यू.सी.एल. अजमेर के डी.एल. त्रिपाठी, ओ.पी. रे, राधाबल्लभ शर्मा, रेणु मेघवंशी, केशव राम सिंघल आदि भी उपस्थित थे।



(संकलित)

Saturday, April 7, 2018

सूचना के अधिकार के जन आंदोलन की कहानी 'The RTI Story: Power to the People' पुस्तक का विमोचन


सूचना के अधिकार के जन आंदोलन की कहानी 'The RTI Story: Power to the People' पुस्तक का विमोचन

सूचना के अधिकार के जन आंदोलन की कहानी 'The RTI Story: Power to the People' नामक पुस्तक का विमोचन ब्यावर के चांग गेट कुमारानन्द सर्किल पर दिनांक 6 अप्रेल 2018 को संपन्न हुआ. मजदूर किसान शक्ति संगठन और रोली बुक्स द्वारा आयोजित विमोचन समारोह में मैग्सेसे पुरस्कार विजेता और मजदूर किसान शक्ति संगठन की श्रीमती अरुणा रॉय द्वारा लिखित पुस्तक 'The RTI Story: Power to the People' का विमोचन हुआ. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दैनिक नवज्योति के प्रधान सम्पादक दीनबंधु चौधरी थे. कार्यक्रम में निखिल डे और रोली बुक्स की एडिटर इन चीफ प्रिया समारोह में अतिथि थे. कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि चौधरी ने कहा कि अरुणा रॉय ने आम जन के साथ मिलकर जो संघर्ष किया वो काबिले तारीफ़ है. इस संघर्ष की वजह से ही देश को आरटीआई जैसा मजबूत कानून मिला. ऐसा आंदोलन करना और कानून बनवाना निश्चित रूप से मुश्किल काम था. आरटीआई सरकारी तंत्र में फैले भ्रष्टाचार का खात्मा कर गैर कानूनी आय के स्रोतों पर अंकुश लगाता है. आरटीआई का ही डर है कि अधिकारी घोटाले करने और कोई भी गलत काम करने से कतराने लगे हैं. मुख्य अतिथि ने कहा कि आरटीआई कानून तो बन गया है लेकिन उसमें सुधार के लिए अभी भी एक आंदोलन की जरुरत है. आरटीआई आंदोलन की जनक अरुणा रॉय ने कहा कि यह पुस्तक उनके द्वारा नहीं लिखी गयी है. वह लेखक नहीं, केवल संकलकर्ता हैं. उन्होंने कहा कि ब्यावरवासियों सहित मजदूर किसान शक्ति संगठन से जुड़े अनेक लोगों ने आंदोलन के समय और आंदोलन के बाद भी पूरा सहयोग प्रदान किया. समारोह में वक्ताओं ने कहा कि यह वह पुस्तक है जो आने वाली पीढ़ी को आंदोलन की जानकारी देगी और उनका मार्गदर्शन करेगी. कार्यक्रम में आंदोलन से जुड़े अजमेर से डीे एल त्रिपाठी, ओ. पी. रे, मजदूर किसान शक्ति संगठन के शंकरसिंह, नौरती, ग्यारसी, ओम महावर, रामप्रसाद कुमावत, अशोक सेन, आदि गणमान्य लोग उपस्थित थे.

इस पुस्तक को लिखने में कई साल लगे. यह पुस्तक ऐतिहासिक जानकारी से भरपूर है. पुराने दस्तावेजों अभिलेखों को व्यवस्थित करना, धूल भरी सामग्री के ढेर में से जरूरी दस्तावेजों को ढूंढना, पुराने विडियो और फोटो को खंगालना, यह एक बड़ा काम था. यह पुस्तक नागरिकों और राज्य के बीच सत्ता परिवर्तन के लिये कानून लाने की लोगों की एक लंबी लड़ाई की कहानी है. साझे संघर्ष को रेखांकित करने के लिये यह पुस्तक एक प्रयास है. यह पुस्तक सूचना के अधिकार संघर्ष के इतिहास की जानकारी प्रदान करती है. सूचना के अधिकार के भविष्य के चिंतन के लिए यह पुस्तक एक सन्दर्भ ग्रन्थ है.

पुस्तक के विमोचन से पूर्व मजदूर किसान शक्ति संगठन द्वारा एक जन-चेतना रैली ब्यावर के मुख्य बाजारों से निकाली गयी. अपने उद्बोधन में श्रीमती अरुणा रॉय ने उनसे जुड़े और ब्यावर शहर के सभी नागरिकों का आभार व्यक्त किया, जिन्होंने सूचना के अधिकार आंदोलन को सफल बनाने में अपना सहयोग दिया.

सूचना के अधिकार से सम्बंधित आंदोलन एक ऐसा अभियान रहा जो समय के साथ एक बहुत ही शानदार जीवंत जन-आंदोलन के रूप में विकसित हुआ.

रोली बुक्स द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक अंग्रेजी में है और शीघ्र इसका हिंदी संस्करण भी प्रकाशित होगा.

अंग्रेजी में लिखी पुस्तक पर अधिक जानकारी के लिए कृपया रोली बुक्स की वेबसाईट पर इस लिंक को क्लिक करें.

- केशव राम सिंघल

Wednesday, February 7, 2018

Time Limit to get the information


Time Limit to get the information

Time limit to get the information is as under:
- 30 days from the date of application
- 48 hours for information concerning t to Assistanhe life and liberty of a person
- 5 days shall be added to the above response time, in case the application for information is given to Assistant Public Information Officer.
- If interest of a third party are involved then time limit will be 40 days (maximum period + time given to the party to make representation).

Failure to provide information within the specified period is a deemed refusal.

In short, we can say that the time limit for getting a response to your RTI inquiry, from the concerned Public Information Officer (PIO) is generally 30 days, from the date your application is submitted. In a case where the application is submitted to the Assistant PIO, five additional days are allowed.

Friday, January 5, 2018

सूचना का अधिकार कानून की अनुपालना - मंत्री कार्यालयों में लोक सूचना अधिकारी नहीं


*सूचना का अधिकार कानून की अनुपालना - मंत्री कार्यालयों में लोक सूचना अधिकारी नहीं*

यह अत्यंत दुःखद स्थिति है कि कानून बनने के बारह साल बाद भी मंत्री कार्यालयों में लोक सूचना अधिकारी नहीं हैं. इस सन्दर्भ में दैनिक भास्कर ने अपनी रिपोर्ट छापी है, जिसे देखें.


साभार - दैनिक भास्कर 05 जनवरी 2018

देश में पारदर्शी प्रशासन देने और आम आदमी को सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों के बारे में जानने और सूचना पाने का अधिकार देने के लिए करीब बारह साल पहले संसद ने 'सूचना का अधिकार' कानून पारित किया था, उसकी क्रियान्विति इन दिनों बुरे दौर से गुजर रही है. आज हालात ऐसे हैं कि 'सूचना का अधिकार' कानून के अंतर्गत बार-बार सूचनाएं माँगने पर भी सरकारी विभागों से सूचनाएं नहीं मिल पाती हैं या संबंधित अधिकारी आधी-अधूरी सूचनाएं दे देते हैं. राज्यों के सूचना आयोगों में पर्याप्त संख्या में कर्मचारी नहीं हैं और राज्य सरकारें इस कानून की क्रियान्विति के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं करती हैं.

इस कानून की पालना आज चिंता की बात है.

- केशव राम सिंघल