Sunday, October 12, 2025

सूचना का अधिकार दिवस

सूचना का अधिकार दिवस 

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प्रतीकात्मक चित्र साभार NightCafe 


12 अक्टूबर का दिन भारत में सूचना के अधिकार (Right to Information - RTI) के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। भारत में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (Right to Information Act, 2005) को 12 अक्टूबर 2005 से पूरे देश में (जम्मू-कश्मीर को छोड़कर, जहाँ बाद में लागू हुआ) प्रभावी किया गया था। अर्थात् — 12 अक्टूबर 2005 को यह कानून कार्यान्वित हुआ, जिससे हर भारतीय नागरिक को सरकारी कार्यालयों और सार्वजनिक प्राधिकरणों से जानकारी प्राप्त करने का कानूनी अधिकार मिला। 12 अक्टूबर का यह दिन “सूचना का अधिकार दिवस” (RTI Day) के रूप में भी मनाया जाता है।


यह कानून नागरिकों को शासन में पारदर्शिता (transparency) और उत्तरदायित्व (accountability) सुनिश्चित करने का साधन देता है। यह लोकतंत्र को मज़बूत बनाता है और भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक प्रभावी उपकरण है। इसलिए, 12 अक्टूबर का दिन सूचना के अधिकार के इतिहास में एक मील का पत्थर (milestone) है — क्योंकि इसी दिन यह अधिकार भारतीय नागरिकों को व्यवहारिक रूप से प्राप्त हुआ।


सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI Act, 2005) ने शासन को जनता के प्रति उत्तरदायी और पारदर्शी बनाया है। इस कानून की वजह से आम नागरिक अब उन सूचनाओं तक पहुँच सकते हैं जो पहले केवल सरकारी दफ्तरों तक सीमित थीं।


इस कानून के तहत जनता सरकारी योजनाओं और धन के उपयोग की जानकारी प्राप्त करती है। कई गाँवों में नागरिकों ने सूचना का अधिकार दायर करके यह जानकारी प्राप्त की कि उनके क्षेत्र में विकास योजनाओं (जैसे प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, मनरेगा आदि) के लिए कितना धन स्वीकृत हुआ और वास्तव में कितना खर्च हुआ। अक्सर इसका परिणाम यह हुआ कि फर्जी बिलों और कागज़ी कार्यों के जरिए हुए भ्रष्टाचार का पर्दाफाश हुआ और प्रशासन को सुधारात्मक कार्रवाई करनी पड़ी।


इस कानून के कारण नियुक्तियों और पदोन्नतियों में पारदर्शिता सुनिश्चित हो सकी। कई मामलों में उम्मीदवारों ने सूचना का अधिकार के माध्यम से यह जानकारी पाई कि चयन प्रक्रियाओं में किस प्रकार अंक दिए गए या इंटरव्यू में किन मापदंडों का उपयोग हुआ। इससे भेदभाव और पक्षपात के बहुत से मामले सामने आए, जिससे चयन प्रक्रिया में सुधार हुआ।


इस कानून का उपयोग कर स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में जवाबदेही सुनिश्चित की जा सकी। कुछ नागरिकों ने सूचना का अधिकार के ज़रिए यह जानकारी प्राप्त की कि उनके क्षेत्र के सरकारी अस्पतालों में कितनी दवाइयाँ खरीदी गईं और मरीजों को कितनी वितरित की गईं। इसका परिणाम यह रहा कि कई बार स्टॉक और वितरण में गड़बड़ियाँ सामने आईं, जिसके फलस्वरूप आगे जाँच और सुधारात्मक कार्रवाई हुई।


इस कानून की वजह से शहरी सेवाओं और नागरिक सुविधाओं में सुधार हुआ। कई बार नागरिकों ने RTI लगाकर स्थानीय प्रशासन (नगर निकाय) से यह पूछा कि उनकी कॉलोनी में सीवर लाइन या सड़क मरम्मत के लिए कब-कब बजट स्वीकृत हुआ और काम क्यों नहीं हुआ। परिणामस्वरूप नगर निकायों को जवाब देना पड़ा और जनहित के कार्यों की गति बढ़ी।


सरकार के उच्च स्तर पर भी जवाबदेही सुनिश्चित हुई। सूचना का अधिकार के माध्यम से प्रधानमंत्री कार्यालय, मुख्यमंत्री कार्यालय, विभिन्न मंत्रालयों और न्यायालय प्रशासन तक से भी आम नागरिकों ने जानकारी माँगी — जैसे फाइलों की स्थिति, निर्णय में विलंब के कारण या नीति निर्माण की प्रक्रिया। इससे शासन व्यवस्था में नीतिगत पारदर्शिता और नागरिक भागीदारी को बढ़ावा मिला।


सूचना का अधिकार अधिनियम ने शासन को “जनता से छिपाने वाले तंत्र” से बदलकर “जनता को जवाब देने वाले तंत्र” में परिवर्तित किया है। हालाँकि, चुनौतियाँ अभी भी हैं — जानकारी देने में देरी या टालमटोल, अधूरी सूचनाएँ प्रदान करना, और RTI कार्यकर्ताओं की सुरक्षा का अभाव। फिर भी, यह कहा जा सकता है कि सूचना का अधिकार अधिनियम ने शासन की पारदर्शिता को नई दिशा दी है और जनता को सशक्त बनाया है। सूचना का अधिकार नागरिक सशक्तिकरण का प्रतीक है, जो शासन को जनता के प्रति जवाबदेह बनाता है और लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करता है।


सूचना का अधिकार दिवस पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।


— केशव राम सिंघल 

 

 

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